रक्षाबंधन का परिचय
Introduction of Raksha Bandhan
रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार भारत में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को भाई बहन के स्नेह के लिए मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांधती हैं जिसे राखी के नाम से जानते हैं। इस पर्व पर भाई रक्षा सूत्र बंधवाने के बाद अपनी बहन से जीवनभर रक्षा करने का वचन देता है। इस त्यौहार को भी होली, दीपावली, दशहरा, मकर संक्रांति, नवरात्रि आदि तीज त्यौहार की तरह बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
इस त्यौहार में भाई बहन के प्यार को एक परंपरा के रूप मे मनाया जाता है।

रक्षाबंधन कब मनाया जाता है?
When is Raksha Bandhan Celebrated?
पंडित नीलमणि शास्त्री ने बताया कि रक्षाबंधन का त्यौहार प्रति वर्ष हिंदू पंचाग के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है इसलिए इसे श्रावणी भी कहते हैं। अंग्रेजी माह के अनुसार यह त्यौहार अधिकतर अगस्त माह में आता है।
इस वर्ष रक्षाबंधन का त्यौहार 22 अगस्त 2021, रविवार को मनाया जाएगा।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 21 अगस्त शाम 3:45 बजे से तथा
पूर्णिमा तिथि समापन 22 अगस्त शाम 5:58 बजे तक।
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
Auspicious Time of Raksha Bandhan in Hindi
आमतौर पर देखा जाता है रक्षाबंधन वाले दिन भद्रा के कारण बहनों को राखी बांधने के लिए कम समय मिलता है। किंतु इस रक्षाबंधन पर भद्रा का साया नहीं होने के कारण राखी बांधने के लिए 12 घंटे और 11 मिनट की अवधि का दीर्घकालीन शुभ मुहूर्त है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने बताया कि
राखी बांधने का समय प्रातः 05:50 से सायं 06:03 तक बांधी जा सकेगी।
शुभ मुहूर्त – सुबह 5.50 मिनट से शाम 6.03 मिनट तक
दोपहर 1.44 से 4.23 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त दोपहर 12.04 से 12.58 मिनट तक
अमृत काल सुबह 9.34 से 11.07 तक
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रक्षाबंधन क्या है?
What is Raksha Bandhan?
रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्रेम का एक पावन पर्व है। इसमें बहन अपने भाईयो की कलाई पर रक्षा सुत्र बांधती हैं जो एक पवित्र धागा होता है। भारतीय परंपरा में राखी के धागे को लोहे की कड़ी से भी मजबूत माना जाता है क्योंकि यह आपस में प्यार और विश्वास की परिधि से भाइयों और बहनों को दृढ़ता से वचनबद्ध करता है।
रक्षाबंधन का अर्थ
Meaning of Raksha Bandhan
रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है “रक्षा +बंधन”।
इसका अर्थ होता है एक ऐसा बंधन जो रक्षा प्रदान करता हो।
रक्षाबंधन कैसे मनाया जाता है?
How is Raksha Bandhan Celebrated?
हिंदू धर्म की मान्यता और परम्परा के अनुसार के अनुसार रक्षाबंधन के दिन बहनें एक थाली में रोली, चावल, दीपक, रक्षा सूत्र (राखी), मिठाई के साथ पूजा की थाली तैयार करती है और घर के मुख्य द्वार पर दोनों तरफ गेरू से श्रवण बनाती है। इसके बाद श्रवण की पूजा करके उस पर राखी बांधती हैं।
श्रवण पूजा के बाद बहनें एक शुभ, अभिजीत, अमृत मुहूर्त में भाई की एक थाली में रोली, चावल, दीपक, रक्षा सूत्र (राखी), मिठाई लेकर आरती उतारती हैं और तिलक करती हैं। इसके बाद भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और घेवर मिठाई से मुंह मीठा कराती हैं। बहनें भगवान से भाई के स्वास्थ्य, तरक्की और सुख समृद्धि की कामना करती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई अपनी बहन को जीवनभर रक्षा करने का वचन देता है और मिठाई खिलाकर उपहार प्रदान करता है। इस तरह से रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता है।
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रक्षाबंधन श्रावण मास का अंतिम दिन होता है क्योंकि इस दिन पूर्णिमा होती है और पूर्णिमा मास की अंतिम तिथि होती है। सावन के महीने के बाद पेड़ों से झूले उतार लिए जाते हैं, इसलिए इस दिन महिलाएं, लड़कियां अपने भाइयों को राखी बांधने के बाद पेड़ की टहनी पर झूला डालकर झूला झूलती हैं और सावन के मधुर गीत गाती है। सभी मिल जुलकर एक साथ झूला झूलती हैं और हंसी ठिठोली करती हैं।
राजस्थान में रक्षाबंधन कैसे मनाते है?
How is Raksha Bandhan Celebrated in Rajasthan?
राजस्थान मनाए जाने वाले त्यौहारों में गणगौर, हरियाली तीज, अक्षय तृतीया, हरियाली अमावस्या, रक्षाबंधन आदि मुख्य है। इनके अलावा भी बहुत से त्यौहार मनाए जाते है किंतु वे सभी राजस्थान के अलावा संपूर्ण भारत में भी मनाए जाते है। राजस्थान में रक्षाबंधन और हरियाली तीज पर नव विवाहित स्त्रियों का सिंजारा होता है। इसमें सास अपनी नई शादीशुदा बहुओं को 16 सिंगार का सामान देती हैं और बहुएं इसे पहन कर सज धज के पूजा करती है। अधिकांशतः यह हरियाली तीज पर किया जाता है किंतु कहीं कहीं रक्षाबंधन तक भी सिंजारा किया जाता है। रक्षाबंधन पर राजस्थान में सबसे लोकप्रिय और स्वादिष्ट मिठाई घेवर मिलते है। मेलों का आयोजन होता है। इस दिन पेड़ों की टहनियों पर झूला डालकर महिलाएं झूला झूलती हैं।
प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन पर राजस्थान सरकार द्वारा पूरे राज्य में संचालित सरकारी बसों में महिलाओं के लिए निशुल्क यात्रा का प्रबंध किया जाता है। जिस कारण महिलाएं एवं लड़कियां त्यौहार पर अपने भाई से मिलने और रक्षाबंधन मनाने के लिए सुगमता से जा सकती है।
दिल्ली हरियाणा में रक्षाबंधन का त्यौहार
Raksha Bandhan Festival in Delhi Haryana
रक्षाबंधन का त्यौहार पूरे भारत में प्रेम पूर्वक मनाया जाता है। दिल्ली में इस दिन लोग अपने घरों की छतों पर पतंग उड़ाते हैं। लाउडस्पीकर आदि पर गाने चलाकर नाचते गाते है। बहन भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं।
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विद्यालयों में राखी का त्यौहार
Rakhi Festival in Schools
राष्ट्र गान के बाद होने वाली प्रतिज्ञा में एक पंक्ति है – “समस्त भारतीय मेरे भाई बहन हैं।”
इसी पंक्ति का स्मरण कर रक्षाबंधन से एक दिन पहले विद्यालयों में राखी का पर्व मनाया जाता है। विद्यालय में बालिका या छात्राएं अपने सहपाठी भाइयों या बालकों की कलाई पर राखी बांधती हैं। अपने घर के अलावा स्कूलों में भी यह त्यौहार बड़े ही प्रेम पूर्वक मनाया जाता है। इसमें बालकों की पूरी कलाई बालिकाओं द्वारा रंग-बिरंगी राखी से भर दिया जाता है। कुछ बालकों की इसमें असहमति के बावजूद परिस्थिति के अनुसार उन्हें यह करना पड़ता है। यह दृश्य बहुत ही अद्भुत, रोचक और दर्शनीय होता है।
रक्षाबंधन की ऐतिहासिक कहानियां –
Historical Stories of Raksha bandhan –
कर्णावती और हुमायूँ
Karnavati and Humayun
ऐसा माना जाता है कि इतिहास में रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला प्रमाण रानी कर्णावती व सम्राट हुमायूँ की पटकथा हैं। मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच चल रहे संघर्ष में चित्तौड़ के राजा की विधवा महारानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूँ को राखी भेजी थी। तब हुमायूँ ने महारानी कर्णावती के गढ़ की रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा प्रदान किया था।
राजा पुरु और एलेक्जेंडर
King Puru and Alexander
भारतीय राजा पुरु और एलेक्जेंडर व पुरू के बीच युद्ध की स्थिति हो गई थी। एलेक्जेंडर हमेशा युद्ध में विजयी रहता था। भारतीय राजा पुरू की अत्यधिक प्रसंशा सुनकर एलेक्जेंडर काफी विचलित हो गया। इससे उसकी पत्नी भी काफी तनाव में आ गई और घबरा गई थी। एलेक्जेंडर की पत्नी ने भारतीय त्यौहार रक्षाबंधन के बारे में जानकारी थी, इस कारण उसने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी। एलेक्जेंडर की पत्नी से राखी प्राप्त कर राजा पुरू ने एलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया और युद्ध समाप्ति की घोषणा करवाई।
भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी
Lord Krishna and Draupadi
रक्षाबंधन की अनेकों कथाओं में यह एक धार्मिक कथा भी है वह है भगवान श्री कृष्ण व द्रौपदी की। एक समय भगवान कृष्ण ने दुष्ट राजा शिशुपाल का वध किया था। उस युद्ध के दौरान श्री कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली चोट आने के कारण रक्त बहने लगा। यह दृश्य देख द्रौपदी अत्यंत दु:खी हुई और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर भगवान श्री कृष्ण की अँगुली में बांध दिया। तब से श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन के रूप में स्वीकार कर लिया और जब वर्षों बाद पांडव जुए में द्रौपदी को दाव पर लगा कर हार गए और भरी सभा में कौरवों द्वारा उनका चीरहरण किया तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी का चीर बढ़ाकर लाज बचाई थी।
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भगवान विष्णु, इन्द्रदेव, सची और असुर राज बलि
Lord Vishnu, Indradev, Sachi and Asur King Bali
एक समय असुरों के राजा बाली ने देव स्थान स्वर्ग में आक्रमण बोल दिया जिस कारण स्वर्ग लोक में देवताओं के राजा इंद्र को काफी हानि पहुंची। इस घटना से त्रस्त होकर इंद्राणी सचि भगवान विष्णु की शरण में गई। भगवान श्री विष्णु ने इंद्र की पत्नी को एक धागा प्रदान किया और देवराज इंद्र की कलाई पर बांधने के लिए कहा। ऐसा करने के बाद इंद्र के हाथों राजा बलि की पराजय हुई।
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राजा बलि और माँ लक्ष्मी
King Bali and Goddess Lakshmi
भगवत पुराण और विष्णु पुराण में वर्णित कथानुसार जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया, तो राजा बलि ने भगवान श्री विष्णु से प्रार्थना की कि उसे अपने महल में रहने के लिए जगह दें। भगवान विष्णु ने उसकी इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।
भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी को दोनों के बीच मित्रता अच्छी नहीं लगी। अतः मां लक्ष्मी ने पुनः भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ प्रस्थान करने का निश्चय किया। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बाँध कर अपना भाई बना लिया। इस पर बलि ने लक्ष्मी से इच्छित उपहार देने का वचन दे दिया। उपहार स्वरूप माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से भगवान विष्णु को अपने महल में रहने के वचन से मुक्त करने के लिए कहा। बलि ने यह बात मानकर मां लक्ष्मी और भगवान श्री विष्णु को वैकुंठ प्रस्थान के लिए विदा किया और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा किया।
मां संतोषी और शुभ लाभ
Goddess Santoshi and Shubh Labh
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी शुभ और लाभ नामक दो पुत्र हुए। उन दोनों भाइयों की इच्छा थी कि उनकी भी एक बहन हो। रक्षाबंधन वाले दिन शुभ और लाभ को बहन की कमी बहुत खलती थी। दोनों भाइयों ने भगवान श्री गणेश से प्रार्थना की कि उन्हें भी एक बहन दें। कुछ समय पश्चात् नारद जी ने भी गणेश जी को पुत्री के विषय में कहा। इस पर भगवान गणेश सहमत हुए। भगवान श्री गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि की दिव्य ज्योति से रक्षाबंधन के दिन माँ संतोषी का प्राकट्य हुआ और शुभ लाभ के साथ रक्षाबंधन मनाने लगे।
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इस रक्षाबंधन पर क्या है खास –
What is Special on This Raksha Bandhan –
इस रक्षाबंधन पर भद्रा का साया नहीं होने के कारण बहनें पूरे दिन स्नेह की डोर से भाइयों की कलाइयां सजा सकेंगी। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि रक्षाबंधन 22 अगस्त को है।
ज्योतिषियों के अनुसार इस साल रक्षाबंधन के दिन श्रावण पूर्णिमा, धनिष्ठा नक्षत्र के साथ शोभन योग का शुभ संयोग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र में इस संयोग को उत्तम माना गया है।
रक्षाबंधन को बनने वाले ये तीन खास संयोग भाई-बहन के लिए लाभकारी साबित होंगे।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन 22 अगस्त को सुबह 10:34 तक शोभन योग रहेगा। यह योग शुभ फलदायी होता है।
रक्षाबंधन को सायं काल 07:40 तक धनिष्ठा योग रहेगा।
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कुंडली विश्लेषक एवं ज्योतिषाचार्य पं. नीलमणि शास्त्री –
Kundali Analytics and Astrologer Pt. Neelmani Shastri –
+91-7891-1008-11
कुंडली विश्लेषक एवं ज्योतिषाचार्य पं. नीलेश शास्त्री –
Kundali Analytics and Astrologer Pt. Nilesh Shastri –
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