Karma Pradhan, Grah Balwan
कर्म प्रधान, ग्रह बलवान
रामायण से लेकर भगवत गीता में दिए गए निष्काम कर्म के ज्ञान तक, कर्म को ही प्रधानता (Karma Pradhan Grah Balwan) का महत्व दिया गया है। इसके लिए एक कथा से उदाहरण लेते हैं –
जैसा कि सबको पता है रावण प्रकांड विद्वान था, राक्षस कुल का होते हुए भी उसके पांडित्य के आगे महान पंडित और विद्वान भी नतमस्तक थे। लंकापति को शास्त्रों का संपूर्ण ज्ञान था। ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री (Astrologer Pt. Nilesh Shastri) ने बताया कि इसी विद्वता, तंत्र तथा मंत्रों के ज्ञान से उसने ग्रहों को बांध रखा था। बांधने से तात्पर्य यह है कि वह ग्रहों के मंत्रों के अनुसार फल लेने की क्षमता रखता था और उनकी चालों की सटीक गणना कर सकता था। इसी के चलते जब उसका पुत्र मेघनाथ पैदा होने वाला था तो लंकापति ने दिग्विजय कुंडली दशा का निर्माण किया था, जिससे मेघनाथ अर्थात् इंद्रजीत की कुंडली में अपने पुत्र की युद्ध में मृत्यु होने का योग ही ना रहे। इसी के चलते जब उसका पुत्र मेघनाथ पैदा होने वाला था तो लंकापति ने दिग्विजय कुंडली दशा का निर्माण किया था, जिससे मेघनाथ अर्थात् इंद्रजीत की कुंडली में अपने पुत्र की युद्ध में मृत्यु होने का योग ही ना रहे।
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लेकिन विधिवश रावण शनि की चाल नहीं समझ पाया। चूँकि शनि कर्म के कारक होते हैं (Karma Pradhan Grah Balwan) और इसी के चलते कुकर्म करने पर कष्ट और मृत्यु के कारक ग्रह भी होते हैं। इसीलिए शनि की चाल के कारण मेघनाथ की कुंडली में युद्ध में मृत्यु का योग बन गया।अपनी इस हार पर रावण बहुत क्रोधित हुआ और उसने ग्रहों को स्थिर कर दिया और इसी कारण लंका अविनाशी और अजेय हो गई।
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ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री के अनुसार कालांतर में जब भगवान श्री हनुमान जी लंका पहुँचे तो उन्हें यह हाल विभीषण से पता चला जो कि रावण का अनुज भ्राता था। तब हनुमान जी ने रावण के तंत्र को तोड़कर सभी ग्रहों को मुक्त कराया था। इसी दौरान शनि महाराज ने हनुमान जी से कहा कि “प्रभु पहले आप तेल में नहाकर आइए, नहीं तो मेरी दृष्टि पड़ने के कारण आपका अहित होगा। इसी कारण श्री हनुमान जी को तेल चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई।
Karma Pradhan Grah Balwan
जब सभी नौ ग्रहों को मुक्ति मिल गई, तो उन्होंने हनुमान जी को वचन दिया, कि जहाँ हनुमान जी का वास होगा वहाँ सभी ग्रह शुभ कारक और अनुकूल हो जाएँगे और शनि ने कहा, कि हनुमान जी का वास होने पर शनि की ना ढैय्या लगेगी और ना साढ़ेसाती और दृष्टि दोष तो कभी भी नहीं होगा।
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बताया जाता हैं कि तत्पश्चात् लंका और लंकेश की कुंडली में ग्रह दोष उत्पन्न हो गए थे, जिसके चलते बाद में रावण मारा गया और चूँकि हनुमान जी भगवान श्री राम की वानर सेना के प्रमुख थे, इसीलिए ग्रहों के कारक भाव के चलते वह सेना अजेय थी। तो प्रकांड विद्वान और ग्रह को तांत्रिक विधि से बांधने के उपरांत भी रावण से अधिक बलशाली निष्काम कर्म पर विश्वास करने वाले श्री हनुमान निकले। कर्म बल में ग्रहों को अनुकूल होने का आशीर्वाद पाने की शक्ति है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलमणि शास्त्री (Astrologer Pt. Neelmani Shastri) ने बताया कि जो ग्रह रावण को मृत्यु दे सकते थे, उन ग्रहों से हनुमान जी ने ना तो अपने लिए अजेय होने का वरदान मांगा और ना ही कोई और शक्ति, जबकि यदि चाहते मांग सकते थे। लेकिन यह भी देखना आवश्यक है कि जो ग्रह बंधनवश रावण के पास थे, वह उपकार वश हनुमान जी के सम्मुख नतमस्तक थे, यानि कर्म का बंधन हमेशा प्रबल होता है।
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इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने यही ज्ञान अर्जुन को दिया था कि निष्काम कर्म करो, फल की चिंता ना करो। फल तो अवश्यंभावी है, लेकिन अज्ञात है, जबकि कर्म आपके हाथ हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री के अनुसार कथा का सार यह है कि कर्म हमेशा बलवान होता है और बिना किसी इच्छा के केवल कर्म करना ही प्रबल होता है। इच्छा वाले कर्म में लालच होता है, और निष्काम में एक संतुष्टि होती है।
हनुमान जी अर्थात बजरंग बली निष्काम कर्म के एक प्रतीक, एक आदर्श हैं। ना उन्हें कोई राज पाना था और ना ही उन्हें कोई और इच्छा थी। अगर हनुमान को आराध्य मानते हैं तो उनके कर्म भाव को जीने की इच्छा करें। स्वार्थवश तो रावण ग्रहों को ही बांध सकता है, लेकिन ग्रहों की मुक्ति और ग्रहों पर भी उपकार करने की क्षमता केवल निष्काम कर्म वाले हनुमान बनने पर ही मिल सकती है।
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और हाँ हनुमान भी सेवक हैं और नत हैं, लेकिन किसके? मर्यादा पुरूषोत्तम राम के। श्रीराम, जो मर्यादा पुरूषोत्तम थे, तभी उनके लिए सेवा भाव में हनुमान थे। भगवान श्रीराम भी कर्म और मानवीय मर्यादा के उच्च आदर्श थे, इसीलिए सतयुग से लेकर द्वापर तक कर्म की ही शिक्षा आचरण और कर्म से इन देव विभूतियों ने दी है।
आराधना कीजिए चाहे अंश मात्र ही सही, इन कर्म के आदर्शों को जीने की भी कोशिश करनी चाहिए।