Secret of Jagannath Temple
महाप्रभु का महा रहस्य
सोने की झाड़ू से होती है सफाई
भगवान श्री जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान कहते है। उड़ीसा राज्य में स्थित पुरी में भगवान जगन्नाथ जी अपनी भगिनी सुभद्रा और भ्राता बलराम के साथ निवास करते है। किंतु मंदिर के रहस्य ( Jagannath mandir Ka Rahasya ) ऐसे है कि आजतक कोई भी नहीं जान पाया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री (Astrologer Nilesh Shastri) के अनुसार
प्रत्येक बारह वर्ष में जगन्नाथ जी की प्रतिमा को बदला जाता है और कहा जाता है कि उस समय पूरे पुरी शहर में अंधेरा किया जाता है अर्थात पूरे शहर की बिजली बंद की जाती है। बिजली बंद होने के बाद मंदिर परिसर को सेना चारों ओर से घेर लेती है। उस समय मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश निषेध रहता है। कोई भी व्यक्ति मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर सकता है।
ब्रह्म पदार्थ
मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है। मंदिर के पुजारी के नेत्र पट्टी से बंद रहते हैं। पुजारी के हाथ में दस्ताने होते हैं जिसकी सहायता से वह पुरानी प्रतिमा से ” ब्रह्म पदार्थ ” का आदान प्रदान नई प्रतिमा या मूर्ति में करता है। मूर्ति में प्रतिस्थापित ब्रह्म पदार्थ क्या है इसके बारे में आज तक किसी को भी पता नहीं है। इसे आजतक किसी के द्वारा देखा नहीं गया है, ऐसा कहा जाता है। कई शताब्दियों से ये परंपरा अपनाई जा रही है।
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कहा जाता है कि यह एक अलौकिक पदार्थ है, जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए। इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से माना जाता है, किंतु यह क्या है, इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है।
इस प्रक्रिया को प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार दोहराया जाता है। उस समय मंदिर में कड़ी सुरक्षा होती है।
मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया कि महाप्रभु जगन्नाथ की प्रतिमा में आखिर ऐसा क्या है? (Secret of Jagannath Temple) कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो कुछ खरगोश जैसा उछल रहा था। आंखों पर पट्टी और हाथों में दस्ताने होने के कारण केवल महसूस ही कर सकते थे।
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सिंह द्वार में प्रवेश
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री और पंडित नीलमणि शास्त्री बताते हैं कि
हर वर्ष जगन्नाथ जी की यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा स्वयं झाड़ू लगाने के लिए आते हैं। भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज कानों में सुनाई देंगी।
ध्वजा या पताका
आम तौर पर देखा जाता है कि मंदिरों की चोटी पर पक्षी, वानर आदि बैठे रहते हैं, परंतु जगन्नाथ जी मंदिर के ऊपर से आसमान में कोई भी पक्षी नहीं गुजरता है। मंदिर की ध्वजा सदैव हवा की विपरित दिशा में लहराता है। दिन में किसी भी समय पर भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर का 45 मंजिला शिखर है, जिस पर प्रतिदिन ध्वजा बदल कर लगाया जाता है अर्थात् रोज नया झंडा लगाया जाता है। ऐसी कहा जाता है कि यदि एक दिन भी ध्वजा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।
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इसी तरह भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र है, जो हर दिशा से देखने पर अपनी ओर ही प्रतीत होता है।
प्रसाद
भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा या चढ़ाया जाता है, जिसे लकड़ी की आग से पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी भी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
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जय श्री जगन्नाथ