निर्जला एकादशी क्या है ?
Nirjala Ekadashi kya hai ?
निर्जला एकादशी से सम्बन्धित एक पौराणिक कथा है, जिस कारण इसे पाण्डव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसे नजला ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है।
महीने में दो बार एकादशी आती है। ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने बताया कि वर्ष में 24 बार एकादशी का व्रत होता है। अधिकमास होने पर 26 एकादशी हो जाती है। इनमें से कुछ एकादशी विशेष महत्व रखती हैं और उन्हीं महत्वपूर्ण एकादशी में से एक हैं निर्जला एकादशी। जो प्रति वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने बताया कि
वर्ष की बाकी एकादशी में उपवास करने वाले जल ग्रहण कर लेते है, किंतु निर्जला एकादशी में जल भी ग्रहण नहीं किया जाता है। ऐसी शास्त्र की मान्यता है।
निर्जला एकादशी व्रत कब है ?
Nirjala Ekadashi Vrat Kab Hai ?
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलमणि शास्त्री ने बताया कि
इस बार निर्जला एकादशी शनिवार 11 जून 2022 को मनाई जाएगी।
एकादशी तिथि का आरंभ 10 जून 2022 को शाम 04:21 से ही शुरू हो जाएगी, जिसका समापन 21 जून दोपहर 01:31 बजे होगा। निर्जला एकादशी व्रत 21 जून को किया जाएगा। व्रत का पारण अगले दिन रविवार 12 जून को होगा।

निर्जला एकादशी व्रत में पूजा कैसे करें –
How to worship Lord Vishnu in Nirjala Ekadashi Vrat in Hindi
पंडित अभिषेक शर्मा के अनुसार
एकादशी को प्रातः काल स्नान आदि करके भगवान श्री विष्णु की मूर्ति को जल, गंगाजल और दूध से अभिषेक करना चाहिए। भगवान नारायण को व्रत का संकल्प लेकर पूजा करें। रोली चंदन का टिका कर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद नारियल फल अर्पित करें तथा भगवान को मिठाई और फल के साथ तुलसी का पत्ता रखकर भगवान विष्णु को भोग लगाएं और घी का दीपक जलाए।
निर्जल एकादशी का उपवास श्रद्धा से किया जाए तो सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है, नारायण भगवान कृपा भक्तों पर कृपा करते हैं। निर्जला एकादशी के दिन ब्राह्मणों को फल, दुग्ध की मिठाई, वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
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निर्जला एकादशी का व्रत करने से क्या लाभ होता है?
What are the benefits of observing Nirjala Ekadashi fast?
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन वैकुंठ निवासी भगवान विष्णु के निवास स्थान का द्वार खुलता है। जो लोग इस एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त होती है। मनुष्य को अपने जीवन में निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु की कृपा भी होती है।
निर्जला एकादशी में पानी कब पीना चाहिए ?
Nirjala Ekadashi Vrat me Pani Kab Peena Chahiye ?
ज्योतिषाचार्य पंडित नीलमणि शास्त्री ने बताया कि
इस एकादशी व्रत में जल निषेध होता है। इसमें कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हैं। लेकिन पानी पीना नहीं चाहिए, जल ग्रहण करने से व्रत टूट जाता है। सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना चाहिए।
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निर्जला एकादशी व्रत में क्या खाना चाहिए –
Nirjala Ekadashi Vrat me Kya Khana Chahiye in Hindi
व्रत के अगले दिन ही जल, शाकाहार का प्रयोग करना चाहिए। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। ज्योतिषाचार्य पंडित नीलेश शास्त्री ने बताया कि इस उपवास को रखने वाले को व्रत खोलने के लिए शाकाहार का प्रयोग करना चाहिए।
शाकाहार फलों में केला, आम, अंगूर, सेब, अनार, पपीता, चीकू, नारियल पानी, नींबू पानी, मौसंबी रस आदि के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, पिस्ता, खजूर आदि का सेवन कर सकते हैं।
एकादशी व्रत में सभी प्रकार के फल, चीनी, कुट्टू, आलू, साबूदाना, शकरकंद, जैतून, नारियल, दूध, दही, बादाम, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक आदि से बने पदार्थ खाने योग्य होते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
Nirjala Ekadashi Vrat Katha in Hindi
शास्त्रों में बताया गया है कि पांडव भ्रताओं में भीम को छोड़कर उसके सभी भाई युदिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुंती, द्रोपदी आदि सब एकादशी का व्रत करते थे और भीम को भी उपवास करने को कहते थे। किंतु भीम अपने भाइयों को कहता है कि भाई मैं भगवान की भक्ति, पूजा पाठ आदि तो कर सकता हूँ, दान पुण्य भी दे सकता हूँ लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता हूं। इसलिए व्रत करना मेरे लिए बहुत ही कठिन कार्य है।
इस पर व्यासजी ने कहा कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक के भोगी नहीं बनकर स्वर्ग को प्राप्त करना चाहते हो तो महीने में आने वाली दोनों एकादशी पर अन्न ग्रहण मत किया करो। तभी भीम ने कहा कि हे पितामह! मैं पहले ही कह चुका हूँ कि पेट की क्षुदा मेरे लिए असहनीय होती है। यदि वर्षभर में कोई ऐसा एक ही व्रत हो तो मैं उसका संकल्प ले सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक अग्नि होने के कारण मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता हूं। भोजन करने के बाद ही वह शांत होती है, इसलिए उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है।
इसलिए आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताने की कृपा करें जो वर्ष में केवल एक बार ही हो और उसे करने से मुझे मोक्ष मिल जाए। इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! महान ऋषियों ने शास्त्रों में दोनों पक्षों की एकादशी के व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति का वर्णन किया है।
व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक के नाम से भयभीत हो गए और कहने लगे कि प्रभु अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मेरे लिए असंभव जैसा है, किंतु वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ।
अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए।
यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला एकादशी है। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के अलावा जल वर्जित है। आचमन में भी छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं करें तो उस व्यक्ति को वर्ष में आने वाली समस्त एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों को फल, वस्त्र, मिठाई आदि का दान करना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।
व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझे स्वयं श्री नारायण ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक होता है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है।
संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए।
उस दिन भगवान विष्णु के मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।
इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ।
इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है। हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें प्रथम भगवान का पूजन, गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, पादुका आदि का दान करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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