Shubh Muhurt – ये है शुभ और अशुभ फल देने वाली तिथियां

Shubh Ghadi muhurt
Shubh Ashubh Muhurt

Shubh Muhurt, Ashubh Muhurt

शुभ और अशुभ फल देने वाली तिथियां

ज्योतिष शास्त्र में किसी भी कार्य को आरंभ करने से पूर्व शुभ और अशुभ घड़ियां / तिथियां (Shubh Muhurt Tithiyan) देखना आवश्यक होता है। आइए ज्योतिषाचार्य पंडित निलेश शास्त्री से जानते हैं तिथियों और उनके स्वामियों के बारे में –

चंद्र की एक कला को तिथि माना गया है। इसका मान आदित्य व चंद्र के बीच के अन्तर अंशों से निकाला जाता है। प्रतिदिन 12 अंशों का भ्रमण आदित्य व चंद्र के भ्रमण में होता है, जिसकी गणना हम पक्षों को लेकर करते है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की और पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियां कृष्ण पक्ष की होती है। हमें तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी रहती है। एक संवत्सर में 12 मास होते है प्रति तीन वर्ष में एक महीने का अधिक मास आता है।

तिथियों का पंच भाग

शुभ मुहूर्त निकालने से पूर्व नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा तिथियों में देखा जाता है। यह देखना जरूरी भी होता है। भविष्यवक्ता पंडित निलेश शास्त्री ने बताया कि 1, 6, 11 नंदा, 2,7,12 भद्रा 3, 8, 13 जया 4, 9, 14 रिक्ता और 5, 10, 15 पूर्णा तिथियां कहलाती हैं।

कई बार इनके साथ वार का शुभ संयोग होता है, जो बहुत ही शुभ फल प्रदान करने वाला होता है।

जैसे मंगलवार को जया,

बुधवार को भद्रा,

गुरूवार को पूर्णा,

शुक्रवार को नंदा तथा

शनिवार को रिक्ता तिथियां कार्य की सिद्धिदायक होती है।

इन तिथियों में कार्य को आरंभ करने का मतलब सफलता के काफी करीब होना माना जाता है।

इसी प्रकार नंदा तिथि रविवार या मंगलवार को, भद्रातिथि सोमवार या शुक्रवार को, जया तिथि बुधवार को, रिक्ता तिथि गुरूवार को तथा पूर्णा तिथि शनिवार को आए तो बेहद कष्टकारी योग होता है। इस योग में कार्य करने से ज्यादातर मामलों में विफलता ही मिलती है। हानि होने की संभावना बढ़ जाती है।

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तिथियां और उनके स्वामी

जैसा कि पहले बताता गया है की 16 तिथियां होती उन 16 तिथियों के स्वामित्व के बारे जानते हैं, किस तिथि का कौन स्वामी है। ज्योतिषाचार्य पंडित निलेश शास्त्री ने बताया कि

प्रतिपदा का स्वामी अग्नि,

द्वितीया का ब्रह्मा,

तृतीया की गौरी,

चतुर्थी का गणेश,

पंचमी का शेषनाग,

षष्ठी का कार्तिकेय,

सप्तमी का सूर्य,

अष्टमी का शिव,

द्वादशी का विष्णु,

त्रयोदशी का कामदेव,

चतुर्दशी का शिव पूर्णिमा का चंद्रमा व

अमावस्या का पितृ स्वामी होते है। इन स्वामियों का विचार करके ही हमें शुभ अशुभ कार्यों को पूरा करना चाहिए।

क्रमश: प्रतिपदा के दिन अग्नि से सम्बन्धित काम करना चाहिए। इसी प्रकार ब्रह्मा, गौरी, गणेश, शेषनाग, कार्तिकेय, सूर्य आदि देवों की अराधना क्रमश: तिथियों में करने से विशेष सिद्धिदायक होती है।

इसी के साथ नवमी तिथि को दुर्गा देवी की आराधना तंत्र विधा में सफलता देती है।

दशमी को प्रतिशोध वाले कार्य और एकादशी को विशेषरूप से दान पुण्य व्रत का महत्व है।

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तिथियों पर दोष तथा पूर्ण सफलता

किन तिथियों को भूख से सम्बंधित दोष पैदा होते हैं-

एकादशी को हमेशा दूसरे जीवों का खिलाना चाहिए।

द्वादशी को विष्णु भगवान की पूजा का बड़ा महत्व है।

त्रयोदशी को विवाह मुहुर्त नहीं करना चाहिए। लेकिन इस तिथि की अर्द्धरात्रि में वशीकरण मंत्र जप सिद्धिदायक होते है। इनके जप से कार्य के पूर्ण होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी अमावस्या के पहले वाली में पितृ की पूजा का विशेष महत्व है। पितरों की पूजा इसी तिथि को करनी चाहिए और

पूर्णिमा सभी कार्यो में सफलता देने वाली होती है। इस दिन उपवास और दान करने से लाभ होता है।

किस तिथि या मास में नही करना चाहिए शुभ काम

अधिकमास, खरमास, मलमास में वैवाहिक मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। पंडित निलेश शास्त्री ने बताया कि अधिकमास प्रति 3 वर्ष में आता है और खरमास और मलमास प्रतिवर्ष आता है। जब सूर्य धनु और मीन राशि में होता है तब यह मास आता है। इस समय दान पुण्य और आधत्मिक कथा का आयोजन करना लाभकारी होता है।

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चैत्र मास में दोनों पक्ष की अष्टमी और नवमी वैशाख में दोनों पक्षों की द्वादशी और ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी, आषाढ़ में कृष्ण पक्ष की षष्ठमी व शुक्ल पक्ष की सप्तमी, श्रावण मास में दोनों पक्षों की द्वितीया व तृतीया, आश्विन में दोनों पक्षों की दशमी व एकादशी कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी मृगशिर मास में दोनों पक्षों की सप्तमी व अष्टमी पौष मास में दोनो पक्षों की चतुर्थी व पंचमी माघ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी व शुक्ल पक्ष की षष्ठी फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि मास शून्य तिथियां होती हैं। इन तिथियों शुभ काम नहीं करना चाहिए। शुभ कार्य करने से लाभ से अधिक हानि होने की संभावना बढ़ जाती है।











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