वासावलेह क्या है?
What is Vasavaleha in Hindi
वासावलेह एक आयुर्वेदिक औषधि है। वासावलेह (Health Benefits of Vasavaleha) को बनाने के लिए मुख्य घटक अडूसा के पत्ते हैं। अडूसा के पत्तों के अलावा जड़ का प्रयोग किया जा सकता है।
वासा अवलेह में अवलेह का आशय ऐसी औषधि से है, जिसे जिह्वा द्वारा चाटकर सेवन किया जाता है। यह एक प्रकार से ब्रह्म रसायन, च्यवनप्राश, द्राक्षावलेह जैसा होता है। इस अवलेह को बनाने के लिए कई तरह की जड़ी बूटियों और चूर्ण को पकाया जाता है और गाढ़ा किया जाता है।
वासावलेह के सेवन की विधि
Method of Consuming Vasavaleh in Hindi
इस अवलेह का सेवन हर उम्र के व्यक्ति की एक निश्चित मात्रा में अथवा वैद्य की सलाह पर करना चाहिए।
अवलेह का सेवन खाना खाने के बाद सुबह शाम एक एक चम्मच दूध या पानी के करना चाहिए।
वासावलेह के सेवन की मात्रा
Dosage of Vasavaleh in Hindi
इस अवलेह का सेवन चिकित्सक द्वारा बताई गई मात्रा के अनुसार अथवा एक एक चम्मच सुबह शाम दूध या पानी के साथ।
वासावलेह के सेवन की अवधि
Vasavaleha Consumption Period
यह अवलेह का बीमारियों को जड़ से खत्म करने के लिए कम से कम एक माह तक नियमित रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए।
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वासावलेह का उपयोग
Usage of Vasavaleha in Hindi
वासावलेह का उपयोग (Benefits of Vasavaleha) क्षय रोग (टीबी), खांसी, कफ में खून, श्वसन रोग, पार्श्वशूल, हृदय रोग, कंठ शूल, रक्तपित्त और ज्वर आदि को दूर करने के लिए किया जाता है। वासावलेह कितनी भी पुरानी खांसी, दमा और टीबी जैसे रोगों में बहुत ही कारगर औषधि है। इसका सेवन पेट में दर्द को भी कम करने के लिए भी किया जाता है। गले में होने वाली सूजन को कम करने के लिए भी वासावलेह औषधि का प्रयोग किया जाता है। यह मुख्य रूप से खांसी, टीबी, दमा, पार्श्व शूल, ज्वर जैसी खतरनाक बीमारियों में लाभकारी होती है।
वासावालेह की सेल्फ लाइफ
Vasavaleha’s Self Life or Expiry in Hindi
घर पर निर्मित अवलेह को 5 वर्ष से भी अधिक समय तक प्रयोग में लिया जा सकता है। इसकी प्रयोग अवधि बाजार में मिलने वाले अवलेह से अधिक होती है। इसका कारण यह है कि इसमें किसी भी प्रकार के हानिकारक केमिकल नहीं मिलाए जाते हैं। घर पर निर्मित अवलेह (Benefits of Vasavaleha) पूरी तरह शुद्ध और सुरक्षित होता है। वर्तमान में बाजार में मिलने वाले अधिकतर अवलेह की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए इसमें सोडियम बेंजाईट मिलाया जाता है। इस कारण इसका 3 वर्ष से अधिक समय तक प्रयोग किया जा सकता है।
वासावलेह पर श्लोक
(Shlok on Vasavaleha)
वासकस्य रसप्रस्थं माणिका सितशर्करा,
पिप्पल्या द्विपलं तावत्सर्पिषश्च शनै: पचेत्।
तस्मिल्लेहत्वमायाते शीत क्षौद्रपलाष्टकम् ,
दत्त्वाऽवतारयेद्वैद्यो लीडो लेहोऽयमुत्तमः।
हन्त्येव राजयक्ष्माणं कासं ह्वासं च दारुणम्,
पार्श्वशूलं च हृच्छ्रलं रक्तपित्तं ज्वरं तथा।
(भैसज्य रत्नावली के संदर्भ)
वासावलेह के फायदे
Health Benefits of Vasavaleha
- इस अवलेह से सर्दियों में होने वाली बीमारियों जैसे गले में खराश, छींक आना, ठंड लगना, सर्दी, खांसी, ब्रोंकाइटिस, गंध आदि में आराम मिलता है।
- अडूसा के पत्तों के रस से निर्मित वासावलेह के सेवन से पुरानी से भी पुरानी खाँसी /जीर्ण खाँसी में आराम मिलता है।
- वासावलेह छाती में जमा पुराना कफ को ढीला करके बाहर निकलता है। यह शरीर में कफ को अंदर जमा होने से भी रोकता है।
- सांस फूलने तथा श्वसन रोग आदि में अडूसा बहुत ही फायदेमंद होता है।
- ब्रोंकईटिस, दमा, टीबी आदि रोगों में वासावलेह के सेवन से फायदा होता है।
- हृदय रोग और पार्श्वशूल में भी वासावलेह अत्यंत लाभकारी औषधि है।
- सामान्य सर्दी, जुकाम, खाँसी, बुखार में वासावलेह का सेवन किया जाता है।
- गले में लगातार ठसका जैसा होना या रुक रूककर आने वाली खाँसी में यह बहुत ही लाभकारी औषधि है।
- छाती में कफ के जमा होने, सांस संबंधित समस्या में इसका सेवन करना फायदेमंद होता है।
- वासावलेह टीबी को दूर करता है और फेफड़ों को मजबूती देता है।
वासवलेह के नुकसान
Vasavaleh Harms in Hindi
अभी तक प्रयोग की गई इस औषधि का किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है। यह सभी उम्र के लोगों के लिए पूरी तरह सुरक्षित औषधि है। इसका सेवन बच्चे, युवा, वृद्ध, महिला सभी एक नियमित मात्रा में कर सकते हैं।
वासावलेह में उपयोगी की सामग्री –
Useful Ingredients for Vasavaleha in Hindi
(Benefits of Vasavaleha) वासावलेह, जो पांच तरह की प्राकृतिक औषधीय घटक द्रव्यों से मिलकर बनाया जाता है। वह निम्न प्रकार हैं –
अडूसा (Adusa) –
वासावलेह का मुख्य घटक वासा अर्थात अडूसा होता है। आयुर्वेद चिकित्सा में अडूसा को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। अडूसा प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों, खेतों की मेड़ों आदि जगहों पर मिलता है। इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है, जो द्विबीजपत्री भी होता है। अडूसा के पत्तों का स्वाद कड़वा और कसैला होता है। अडूसा कफ के साथ साथ वात और पित्त को भी दूर करता है।अडूसा के पत्तों का रस घरेलू रूप से कफ को पतला करके शरीर से बाहर निकालने का कार्य करता है। अडूसा के पत्तों को मुंह में रखने से मसूड़ों के दर्द में भी आराम मिलता है।
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पिप्पली (Piper Longum)
पीपली / पीपल पीपलामूल या बड़ी पेपर आदि कई नामों से पहचानी जाने वाली यह औषधि बहुत ही कारगर औषधि है। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में पिप्पली का प्रयोग अनेकों रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। यह खांसी को ठीक करती है।
बहेड़ा (Terminalia Bellirica)
विभीतकी या बहेड़ा एक ऊँचा पेड़ होता है और इसमें एक गोलाकार का फल होता है जिसे भरड, बहेड़ा या विभीतक के नाम से जाना जाता है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए बहेड़ा अत्यंत लाभकारी औषधि है। बहेड़ा रस में मधुर व कषैला होता है तथा त्रिदोष नाशक होता है।
शहद (Honey)
मधु शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य को नियंत्रित करता है। शहद आयुर्वेद की 90% से अधिक औषधियों में प्रयोग किया जाने वाला घटक है। शहद बहुत ही फायदेमंद होता है। आमतौर पर यह बाजार में दुकानों पर आसानी से मिल जाता है, लेकिन प्राकृतिक शहद प्राप्त करने के लिए जंगलों में पेड़ों पर मधु मक्खी के छत्ते सर्दियों में अक्सर मिल जाते हैं। इन छत्तों को तोड़कर शुद्ध शहद प्राप्त किया जाता है।
मिश्री (Sugar Candy)
बाजार में मिश्री दो प्रकार मिलती है। औषधि के कोई भी मिश्री काम में ले सकते हैं। लेकिन बेहतर होगा कि मिश्री के चयन में मोटी धागे वाली सफेद मिश्री काम में लें। इसके अलावा मोटे कटिंग वाली मिश्री भी बाजार में आसानी से मिल जाती है।
घी (Ghee)
आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए अनेकों औषधियों में गाय के घी का प्रयोग किया जाता है। गाय अथवा भैंस का शुद्ध घी गांवों या डेयरी पर आसानी से मिल जाता है।
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वंशलोचन (Tabasheer)
वनों में एक प्रजाति का बांस होता है, जिसके अन्दर से वंशलोचन निकलता है। इसे नजला बांस कहते हैं। यह बांस मादा जाति का होता है और इसमें एक प्रकार का मद जम जाता है जो सूखने के बाद निकाला जाता है।
हल्दी (Turmeric Powder)
भारतीय रसोई में मसालों में आसानी से हल्दी मिल जाती है। हल्दी का प्रयोग खांसी व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। शुद्ध हल्दी प्राप्त करने के लिए साबुत हल्दी लाकर घर पर पीस सकते हैं।
दालचीनी (Cinnamon)
खड़े मसालों में भारतीय रसोई में दालचीनी भी अधिकांशतः मिल जाती है। बाजार में किसी भी पंसारी की दुकान पर आसानी से दालचीनी मिल जाती है। यह एक पेड़ की छाल होती है, जो स्वाद में थोड़ी मीठी मीठी सी लगती है।
वासावलेह बनाने के लिए घटक द्रव्यों की मात्रा
Amount of Ingredients to Make Vasavaleh
अडूसा के ताजा पत्तों का रस – 640 ग्राम
मिश्री – 1280ग्राम
पिप्पली – 80 ग्राम
हल्दी – 40 ग्राम
बहेड़ा – 40 ग्राम
दालचीनी – 40 ग्राम
वंशलोचन – 40 ग्राम
घी – 80 ग्राम
शहद – 320 ग्राम
वासावलेह बनाने की विधि
How to make Vasavaleh in Hindi
सबसे पहले वासा या अडूसा के पत्तों का रस निकाल कर छान लें और इसे एक लोहे की कढ़ाई या मिट्टी के बर्तन में पकने के लिए डालें। इसके साथ ही मिश्री कूट कर दाल दें। इस मिश्रण को गाढ़ी चाशनी बनने तक पकाएं। जब एक तार के जैसी चाशनी बन जाए तो इसमें पिपली चूर्ण, हल्दी, बहेड़ा, दालचीनी और वंशलोचन का चूर्ण मिला लें। साथ ही इसमें घी डाल दें और 5 मिनिट तक पकने दें। इस मिश्रण अच्छी तरह मिला लें और चूल्हे से नीचे उतार दें। जब यह मिश्रण अच्छी तरह ठंडा हो जाए तो इसमें शहद मिला लें। इस तरह आपका वासावलेह बनकर तैयार है।
यदि किसी व्यक्ति के कफ में रक्त आता हो तो इस अवलेह में नाग केशर भी मिला सकते हैं।
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विशेष टिप्पणी –
यह पोस्ट केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से दी गई है। वैद्य से परामर्श और उनके मार्गदर्शन में ही समस्त जानकारी प्रदान की गई है। फिर भी आप अपने वैद्य या चिकित्सक से सलाह लेकर ही औषधि का प्रयोग करें। (Benefits of Vasavaleha)
इस अवलेह को बनाना आसान है किंतु बनाते समय किसी प्रशिक्षित वैद्य या चिकित्सक की देख रेख में ही बनाएं।
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