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गणेश चतुर्थी, शुभ मुहूर्त, पूजन और स्थापना की विधि

पौराणिक कथाओं के अनुसार भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को विघ्नहर्ता भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस कारण इस दिन को भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भारत के महाराष्ट्र राज्य बड़े ही धूम धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अलावा गुजरात में भी गणेश चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन लोग बाजार से मूर्तियां खरीदकर घर में विघ्नहर्ता की स्थापना करते हैं और श्रद्धापूर्वक प्रातः और सायं काल विशेष पूजा अर्चना करते है और विविध प्रकार के फलों और मिष्ठान्नों से भोग लगाकर प्रदान वितरित करते हैं। गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक इस पर्व को इसी प्रकार मनाया जाता है। चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश जी का विसर्जन बड़ी धूम-धाम से किया जाता है और उन्हें अगले वर्ष जल्द वापस आने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी का परिचय – Introduction of Ganesh Chaturthi

शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी में मध्याह्न के समय भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था। इस दिन को भगवान गणेश जी के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी का वाहन चूहा है। भगवान गणेश की ऋद्धि व सिद्धि नाम की दो पत्नियां हैं। भगवान का सर्वप्रिय भोग मोदक (लड्डू) हैं।

प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है।

वैसे तो देश भर में गणेश पूजा पर बड़ी धूम रहती है, लेकिन महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में इसका महत्व विशेष है। वहीं अन्य राज्यों जैसे कर्नाटक, तेलंगाना, यूपी और आंध्र प्रदेश में भी काफी धूमधाम से गणेश उत्सव मनाया जाता है।

मुख्य रूप से महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के त्योहार की 10 दिनों तक धूम रहती है। दूर-दूर से लोग गणपति पंडाल के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

गणेश पूजा को दस दिनों तक हर्षोल्लास के साथ मनाने के बाद अनंत चतुर्दशी पर भगवान श्री गणेश को विसर्जित करने की परंपरा है। विसर्जन पर भक्त मधुर संगीत और गणेश भजन के साथ झूमते-गाते हैं और उनके अगले साल जल्दी लौटने की प्रार्थना करते हैं।

क्या है कलंक चतुर्थी –

गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते है। इस दिन चन्द्र दर्शन निषेध बताया है। अगर इस दिन चन्द्र दर्शन कर लिया हो तो वर्ष में कलंकित होना पड़ता है, अगर गलती से दर्शन हों जाये तो श्रीमद्भागवत के दशमस्कंध के उतर्रार्ध का पाठ करना या सुनना चाहिए। जो आगे दिया गया है।

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गणेश चतुर्थी कब है? – Ganesh Chaturthi Kab Hai?

ज्योतिष मतानुसार इस वर्ष गणेश चतुर्थी का यह पावन पर्व शुक्रवार, 10 सितंबर 2021 से 19 सितंबर तक श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाएगा। इस गणेश चतुर्थी की सुबह 11:08 से रात्रि 9:57 तक पाताल लोक की भद्रा रहेगी, किंतु पाताल लोक की भद्रा गणेश स्थापना में विघ्न नहीं डालेगी। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। इसे विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

गणेश चतुर्थी पूजा का समय – Ganesh Chaturthi Time

इस दिन शुक्रवार रहने से सूर्योदय से 7:46 तक चंचल योग और उसके बाद लाभ अमृत के चौघड़िया 10:51 तक रहेंगे। इसके बाद 12:24 से 13:56 तक शुभ और सूर्यास्त से पूर्व चंचल का ही चौघड़िया होगा ।

शुक्रवार के दिन क्रय विक्रय और व्यापार का दिन शुभ है।

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कैसे करें गणेश जी की विशेष पूजा –

गणपति महोत्सव 11 दिन का मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन या उससे एक दिन पहले भगवान श्री गणेश जी का विग्रह बाजार से लाया जाता है और उसे अनन्त चतुर्दशी तक घर प्रतिष्ठान में विराजमान किया जाता है। साथ ही इन दिनों में भगवान का नित्य प्रतिदिन विविध मिष्ठान्नों से भोग लगाया जाता है।

इन दिनों विशेष रूप से सहस्रार्चन किया जाता है। अखण्ड दीपक जलाया जाता है । प्रातः और सायं काल आरती की जाती है और भोग के लिए प्रसाद की व्यवस्था होती है।

इस समय भक्त अनेकों प्रकार के विग्रह बाजार से खरीदते है – जैसे नृत्य करते गणेश, मोदक का भोग लगाते गणेश जी, ऋद्धि सिद्धि सहित गणेश, पगड़ी बांधे हुए गणेश या अन्य भांति भांति के जैसा पसंद आता है।

गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की ताम्र, चांदी, स्वर्ण, पाषाण और मिट्टी निर्मित गणेश जी की प्रतिमा का पूजन किया जाता है। इस दिन गणेश जी को सहस्रार्चन करने से सिद्धि, धन और व्यापार में वृद्धि होती है।

किस प्रकार करें सहस्रार्चन –

प्रथम पूज्य गणेश जी का षोडशोपचार पूजन के बाद सहस्रार्चन करना चाहिए।

सहस्रार्चन किस वस्तु से करने पर होगा क्या लाभ –

ज्योतिषाचार्य नीलमणि शास्त्री जी बताते है कि लंबोदर को दूर्वा से सहस्रार्चन करना चाहिए। भगवान को दूर्वा अत्यधिक प्रिय है। दूर्वा से अर्चन करने रोग से शांति मिलती है।
मूंग साबुत मुंग से सहस्रार्चन करने से व्यापार में वृद्धि होती है।
धनिया से सहस्रार्चन करने से भगवान कुबेर प्रसन्न होते है। और उनकी कृपा प्रसाद प्राप्त होती है।
इनके अतरिक्त हल्दी, मोदक, गुड़, कमलगट्टा, घी, सिंदूर, मेहंदी, काजू, बादाम, किशमिश, फल आदि से भी सहस्रार्चन किया जाता है।

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कैसे करें गणेश जी की स्थापना और पूजन –

भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य हैं। सभी देवों में सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की ही पूजा की जाती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी पर शुभ मुहूर्त में पूजा करनी चाहिए। गणपति पूजन के समय भगवान श्री गणेश मंत्र का जाप अवश्य किया जाना चाहिए। इस दिन पूजा करने के लिए भगवान श्री गणेश जी को सिंदूर लगाना चाहिए। इसके बाद “ॐ गं गणपतयै नम:” मंत्र का जाप करते हुए दूर्वा अर्पित करनी चाहिए और साथ ही श्री गणेश स्तोत्र का पाठ करना शुभ फलदायक होता है।

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ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन घर में गणपति की स्थापना से भगवान गणेश सभी विघ्नों का हर लेते हैं और इनकी पूजा करते से मनवांछित फल प्राप्त होता हैं।

गणपति स्थापना व पूजन विधि –

गणेश चतुर्थी के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर सोने, चांदी, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर आदि के गणेश जी की मूर्ति को कोरे कलश में जल भरकर, मुंह पर नया कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद गणेश जी की मूर्ति पर सिन्दूर लगाकर किसी आचार्य के द्वारा षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए।

इस दिन पंचामृत से गणेश जी का अभिषेक किया जाता है। अभिषेक के लिए पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल को लिया जाता है। इसके बाद गणेश जी पर कुमकुम, चंदन और कलावा चढाया जाता है।

गणेश जी पर रिद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी और पान अर्पित किए जाते है। पुष्प, फल, दुर्बा आदि चढाया जाता है। गणेश स्थापना के बाद भगवान को दक्षिणा देकर श्रद्धानुसार 11,21,51…. बेसन के मोदकों का भोग लगाने का विधान है। इनमें से 5 मोदक भगवान श्री गणेश की मूर्ति के पास रखकर शेष ब्राह्मणों अथवा बच्चों में बांट देने चाहिए। इसके बाद गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है और प्रार्थना करते हैं कि समस्त कार्य निर्विघ्न पूरा हो।

भगवान गणेश जी का पूजन प्रातः और सायंकाल के समय करना चाहिए। शाम की पूजा के बाद दृष्टि नीची रखते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देकर, ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए। क्योंकि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक का भागी बनना पड़ता है।

भगवान गणेश जी का पूजन करने से विद्या, बुद्धि तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तथा विघ्न दूर होते हैं।

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गणेश चतुर्थी के अनुष्ठान – Ganesh Chaturthi Anushthan


गणेश चतुर्थी पर किए जाने वाले अनुष्ठानों में निम्न चार अनुष्ठान प्रमुख हैं –

प्राणप्रतिष्ठा अनुष्ठान –

इस अनुष्ठान में भगवान श्री गणेश की प्रतिमा लाकर उसकी स्थापना की जाती है।

षडोपचार अनुष्ठान –

इसमें गणेश जी के सोलह रूप में गणेश जी को पुष्प, फल, दुर्वा अर्पण, पंचामृत अभिषेक व अन्य सभी पूजन विधि कर दक्षिणा आदि अर्पित की जाती है।

उत्तरपूजा अनुष्ठान –

इस पूजा विधि में पूजापरांत गणेश प्रतिमा को कहीं भी ले जाया जा सकता है।

गणपति विसर्जन –

इस अनुष्ठान में भगवान गणपति की मूर्ति को नदी या किसी जलीय स्थान जैसे समुद्र, तालाब, कुआं आदि में विसर्जित किया जाता है।

गणेश मंत्र

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

भारत में गणेश जी के प्रसिद्ध मंदिर की सूची

1. त्रिनेत्र गणेश (रणथम्भौर, राजस्थान)
2. मोती डूंगरी (जयपुर, राजस्थान)
3. सिद्धी विनायक (मुंबई, महाराष्ट्र)
4. गणपतिपुले कोंकण तट (रत्नागिरी, महाराष्ट्र)
5. रॉक फोर्ट उच्ची पिल्लायर तिर्रुचिल्लापली (त्रिचि, तमिलनाडु)
6. भुवनेश्वर गणपति मनाकुला विनयागर (पुदुचेरी)
7. मधुर महागणपति मंदिर (कासरगोड, केरला)
8. ससिवे कालू कदले गणेश (हम्पी, कर्नाटक)
9. गणेश टोक (गंगटोक, सिक्किम)
10. श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति (पुणे, महाराष्ट्र)
11. कर्पगा विनायक (पिल्लईयारपट्टी, तमिलनाडु)
12. खजराना गणेश (इंदौर, मध्य प्रदेश)
13. चिंतामन गणेश (उज्जैन, मध्य प्रदेश)
14. वरसिद्धि विनयगर मंदिर (चेन्नई तमिलनाडु)
15. कनिपकम विनायक मंदिर (चित्तूर, आंध्रप्रदेश)

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