जलझूलनी एकादशी पर्व – Jaljhulani Ekadashi
झूलो झूलो रे लाला तोये झुलावे रे गोपिया। भाद्रपद शुक्ल पक्ष के एकादशी (Jaljhulani Ekadashi) को ये उत्सव सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाए जाने वाला पर्व है। प्रत्येक वर्ष में 24 ओर अधिक मास होने पर 26 एकादशी होती है । लेकिन जलझूलनी एकादशी का अपना ही महत्व है। इस दिन को परिवर्तिनी एकदशी (Parivartani Ekadashi) भी कहते है। बताया जाता है कि चातुर्मास में भगवान शयनकाल के समय अपनी करवट लेते है।
व्रत और उसका महत्व
जलझूलनी एकादशी या डोल एकादशी का व्रत का अपना ही एक महत्व है। बताते है कि जो व्यक्ति ठाकुर जी श्री कृष्ण जन्मोत्सव का व्रत करता है। उसे आज के दिन उपवास रखकर जन्माष्ठमी व्रत का पूर्ण फल मिलता है। आपको बता दे इस बार जन्माष्ठमी 12 अगस्त को मनाई गई है। युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! भाद्रपद शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूं तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
यह पद्मा / परिवर्तिनी एकादशी, जयंती और जलझूलनी एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अत: मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें।
एकादशी की पूजा
आज के दिन जो मनुष्य भगवान विष्णु की कमल से विशेष पूजा करता है। ब्रह्मा विष्णु और शिव के लोक को अवश्य जाता है।
आज के दिन भगवान वामन अवतार के विशेष स्तोत्र का पाठ कर उपवास रखना चाहिए।
कैसे मनाते है उत्सव –
जब चातुर्मास में शयन कर रहे ठाकुर जी करवट लेते है तब मन्दिरों में एक अलग ही चल फल बन जाती है। मन्दिर के भक्तगण ठाकुर जी को विशेष पालकी में बैठा कर नगर परिक्रमा करवाते है। पालकी को बांस निम चन्दन की लकड़ी से बनाया जाता है। इसे फूलो तुलसी दलो से सजाया जाता है। इसमें इत्र का छिड़काव करके ठाकुर जी को विराजमान कर नगर परिक्रमा की जाती है। मंदिरों से ढोल नगाड़ों के साथ यात्रा निकली जाती है।
जो भी भक्त इस नगर परिक्रमा में भाग लेता है उसके पूर्ण पाप नष्ठ हो जाते है। साथ ही वो ठाकुर जी के समीप हो जाता है।
पंडित नीलमणि शास्त्री
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