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गणेश चतुर्थी व्रत कथा | गणेश जी की कहानी

श्री गणेश जी की कहानी

अवतरण कहानी –

एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी। माता गौरी ने द्वार पर पहरेदारी करने के लिए शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उस पुतले में जीवन देकर एक सुन्दर बालक का रूप दे दिया। उसे गणेश के नाम से जाना गया। माता पार्वती ने स्नान के लिए जाते समय बालक को आज्ञा दी कि तुम द्वार पर खड़े रहना और बिना मेरी आज्ञा के किसी को भी द्वार के अंदर प्रवेश मत देना। यह कहकर माता पार्वती स्नान करने चली गईं।

श्री गणेश जी

बालक गणेश द्वार पर पहरा दे रहे थे कि तभी वहां भगवान शिव आए और अंदर प्रवेश करने लगे तभी बालक ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव ने बालक को रास्ते से हटने के लिए कहा किंतु वह बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, भगवान शिवशंकर को अंदर प्रवेश करने से रोकता रहा, इस कारण भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए और क्रोधवश त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग दिया।

बालक की दर्द भरी आवाज को सुनकर जब माता गौरी बाहर आई तो उन्होंने देखा बालक गणेश का सिर धड़ से अलग पड़ा हुआ था। यह दृश्य देख माता पार्वती बहुत दुःखी हुई। अपने पुत्र के कटे सिर को देख विलाप करने लगी। उन्होंने भगवान शंकर को बताया कि वो उनके द्वारा बनाया गया बालक था जो उनकी आज्ञा का पालन कर रहा था और माता ने अपने पुत्र को पुन: जीवित करने के लिए भगवान शिव को कहा। माता पार्वती ने क्रोधित होकर पुरे ब्रह्मांड को हिला दिया। इस कारण सभी देवता और स्वयं ब्रह्मा और विष्णु ने वहाँ आकर माता पार्वती को समझाने का प्रयास किया किंतु माता जिद के आगे सभी असफल रहे।

तब ब्रह्मा जी ने शिव गणों को आदेश दिया कि पृथ्वी लोक में जाकर एक ऐसे सबसे पहले दिखने वाले किसी भी जीव बच्चे का मस्तक काट कर लाओं जिसकी माता उसकी तरफ पीठ करके सो रही हो। शिव सेवक नंदी को जाते समय एक जंगल में हाथी का बच्चा दिखाई दिया जिसकी माँ पीठ करके सो रही थी। शिव गण उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए।

भगवान शिव ने हाथी के बच्चे के सिर बालक के सिर स्थान पर लगाकर उसे पुनः जीवित कर दिया। भगवान शिव ने उस बालक को अपने गणों का अधिपति घोषित कर दिया। इस कारण भगवान गणेश को गणपति के नाम से जाना गया।

प्रथम पूज्य प्रतियोगिता कहानी –

श्री गणेश चतुर्थी व्रत कथा

एक समय संपूर्ण ब्रह्मांड पर संकट की घड़ी आ गई थी। तब सभी देवी देवता भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का निवारण करने के लिए प्रार्थना की। उस समय शिव गौरी पुत्र कार्तिकेय व गणेश भी मौजूद थे। माता पार्वती ने शिव जी से कहा कि ” हे प्राणनाथ ! आपको ही कोई युक्ति निकालकर अपने इन दोनों बालकों में से इस कार्य हेतु चुनाव करना चाहिए।

भगवान शिव ने माता पार्वती की बात सुन भगवान गणेश और कार्तिकेय को अपने पास बुलाकर कहा कि ” तुम दोनों में से जो सबसे पहले संपूर्ण ब्रहमाण की परिक्रमा कर लौटेगा, मैं उसी को श्रृष्टि के सभी दुःख हरने का कार्य दूंगा। भगवान शिव की यह घोषणा सुन कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर सवार होकर निकल पड़े। किंतु भगवान श्री गणेश थोड़ी देर बाद उठकर अपने माता पिता की एक परिक्रमा पूर्ण की और पुनः अपने स्थान पर बैठ गये। कार्तिकेय जब अपनी परिक्रमा पूर्ण कर लौटे तो भगवान शिव ने गणेश जी से वहीं बैठे रहने का कारण पूछा तो गणेश जी ने उत्तर दिया कि ” माता पिता के चरणों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का वास है, अतः उनकी परिक्रमा से ही कार्य सिद्ध हो जाता हैं जो मैं कर चूका हूँ”। गणेश जी के इस उत्तर को सुन भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश जी को संकट हरने का कार्य सौपा। इस कारण उन्हें विध्नहर्ता भी कहा जाता है।

श्री गणेश चतुर्थी की व्रत कथा
(Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi)

एक बार एक बहुत ही निर्धन बुढ़िया थी। वह आंखों से अंधी थी। उसके परिवार में उसके अलावा उसका एक बेटा और बहू थे। वह बुढ़िया नित्य प्रतिदिन भगवान गणेश जी की पूजा करती थी।

एक दिन भगवान गणेश गरीब बुढ़िया की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और कहा –

“हे बुढ़िया मां! मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हुआ। अब तुम जो भी वरदान मांगना चाहो, मांग लो। मैं तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण करूंगा।”

यह सुनकर बूढ़ी औरत बोली ” हे प्रभु, मुझे तो कुछ मांगना भी नहीं आता। मैं कैसे और क्या मांगू?”

इस पर भगवान गणेश जी ने कहा कि ” अपने बेटे-बहू से पूछकर कुछ मांग लेना”

तभी बुढ़िया अपने बेटे से पूछने गई और बेटे को सारी बात बताकर पूछा कि ” बता बेटा क्या मांगू मैं।” उसके बेटे ने कहा कि ” मां तू धन मांग ले।”

उसके बाद बहू से पूछा तो बहू ने कहा कि ” मां जी आप नाती पोते मांग लो।”

दोनों की बात सुन बुढ़िया ने सोचा कि ” ये तो सब अपने-अपने मतलब की चीज़े मांगने के लिए कह रहे हैं।”

फिर वो अपनी पड़ोसी से पूछने के लिए गई तो पड़ोसन ने कहा कि ” बहन, तेरी कितनी सी उमर बची है, क्यों तू धन दौलत और नाती पोतों के चक्कर में पड़ती है। तू अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।”

काफी सोच विचार करने के बाद बुढ़िया ने गणेश जी से कहा कि ” भगवान, यदि आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दे दो। मुझे निरोगी काया दो, अमर सुहाग दो, आंखों की रोशनी दो, नाती दो, पोता दो और सब परिवार को सुख शांति दो और अंत में मोक्ष दो।”

यह सुनकर गणेशजी बोले- ” बुढ़िया मां! तुमने तो सब कुछ मांग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार यह सब तुझे मिलेगा। यह वरदान देकर गणेशजी अंतर्धान हो गए। बुढ़िया मां ने जो- जो मांगा, उनको मिल गया।

हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सब कुछ दिया, वैसे ही सबको देना।

इतिश्री श्री गणेश चतुर्थी व्रत कथा

जय श्री गणेश

 

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