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Holi Festival Date and History | होली कब है

होली पर्व की तिथि और इतिहास
Holi Festival Date and History

होलाष्टक क्या है

21 मार्च 2021 रविवार को होली (Holi Festival Date and History) से पहले लगने वाला होलाष्टक शुरू हो रहा है।

होलाष्टक लगने से होली तक सभी प्रकार के मांगलिक व शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।

यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ होकर होलिका दहन के दिन तक चलते हैं।

इस वर्ष होलाष्टक 21 मार्च से 28 मार्च तक है।

पं. नीलमणि शास्त्री (Astrologer Neelmani Shastri) के अनुसार

इस साल होलाष्टक रविवार प्रातः काल 7:11 बजे से प्रारंभ होगा।

अष्टमी तिथि सोमवार सुबह 10:26 बजे तक है।

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Holi

हिंदू शास्त्रानुसार परंपरागत रूप से होलाष्टक 8 दिन के होते हैं।

ये दिन मांगलिक कार्यों के लिए वर्जित माने गए हैं। इन दिनों शुभ कार्य जैसे विवाह, सगाई,  गृह निर्माण, गृह प्रवेश, व्यापार प्रारंभ करना, नौकरी, गोद दस्तूर, मुंडन, जलवा, कुआ पूजन आदि कार्यों के लिए होलाष्टक अशुभ माना जाता है।

होली कब मनाई जाएगी

किसी भी शुभ कार्य को करने से पूर्व भद्रा योग का ध्यान किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि शुभ कार्य भद्रा योग में नहीं किए जाने चाहिए। पुराणों में भद्रा को सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन बताया गया है। भद्रा का स्वभाव भी शनिदेव की तरह बताया गया है। पंचांग की गणना में भद्राकाल की भूमिका विशेष मानी गई है। इसे विष्टि करण में स्थान प्राप्त है। कुछ कार्यों के लिए भद्राकाल को शुभ भी माना गया है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार 28 मार्च को भद्रा काल दोपहर 1 बजकर 54 मिनट तक ही रहेगा।

सनातन धर्म में होली का पर्व पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा की तिथि में मनाया जाता है।

इस वर्ष यह तिथि 28 मार्च रविवार के दिन है।

इसके बाद अगले दिन 29 मार्च 2021 को रंगों की होली खेली जाएगी।

होलिका दहन में भद्रा यानि भद्रकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भद्रा के समय शुभ कार्य का आरंभ और समापन नहीं किया जाता है। होली प्रेम और सौहार्द का पर्व है। होली पर होलिका दहन शुभ मुहूर्त में करने की परंपरा है। मान्यता है कि होली का पूजन कई प्रकार की बाधाओं को दूर कर जीवन में सुख समृद्धि लाती है।

और पढ़ें – होली पर सुख समृद्धि के लिए क्या करें

होलिका दहन क्यों करते हैं?

धुलंडी की पूर्व संध्या में पूर्णिमा को होलिका का दहन किया जाता है। इसके पीछे एक प्राचीन कथा है। हिरण्यकश्यप भगवान श्री विष्णु से कटु शत्रुता रखता था। इसने अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया और घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया।

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख समझाने के बाद भी प्रह्लाद विष्णु जी की भक्ति करता रहा। इस कारण राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र की हत्या करने की कई बार नाकाम कोशिश की। परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे। 

असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से वरदान में ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि पर बैठ गई। 

होलिका दहन कब है?

पंचांग के अनुसार होलिका दहन 28 मार्च रविवार को किया गया जाएगा।

इस दिन पूर्णिमा की तिथि है।

होलिका दहन का मुहूर्त शाम 6 बजकर 37 मिनट से रात्रि 8 बजकर 56 मिनट तक रहेगा।

पंचांग के अनुसार 29 मार्च सोमवार को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि में रंगों की खेली खेली जाएगी।

धुलंडी कैसे मनाए –

होली रंगों का त्योहार (Holi Festival Date and History) है। यह फाल्गुन के महीने मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन गुंजिया, चावल, नमकीन आदि पकवान बनाए जाते हैं। पड़वा या एकम के दिन धुलंडी मनाई जाती है। इस दिन बच्चे, बूढ़े, जवान सभी मिलकर अलग अलग रंगों व गुलाल से होली खेलते हैं। होली प्यार प्रेम से भरा त्यौहार है। इसलिए कहा जाता है कि बुरा न मानो होली है। सूखे फूलों से बनी सुगंधित गुलाल एक दूसरे के मुंह पर मलते है और लोग एक दूसरे से प्रेम पूर्वक भेंट करते है।

बरसाने की प्रसिद्ध लट्ठमार होली

पं. नीलमणि शास्त्री और पं. नीलेश शास्त्री बताते हैं कि

लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा के समय से हुई थी। मान्यता है कि भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ बरसाने होली खेलने जाया करते थे। जहां कृष्ण और उनके सखा राधा और उनकी सखियों के साथ ठिठोली किया करते थे, जिस बात से रुष्ट होकर राधा और उनकी सभी सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। लाठियों के इस वार से बचने के लिए कृष्ण और उनके दोस्त ढालों और लाठी का प्रयोग करते थे। प्रेम के साथ होली खेलने का यह तरीका धीरे-धीरे परंपरा बन गया।

भाई दूज

धुलंडी के एक दिन बाद भाई दूज मनाने की प्रथा कई प्रदेशों में है।

इसमे सुबह ही महिलाएं अपने भाई की लम्बी आयु के लिए यम और भगवान विष्णु की पूजा करती है। इस वर्ष भाई दूज पूजन का समय सुबह 9.30 से दोपहर 1 बजे तक 30 मार्च 2021 रहेगा।

इस दिन बहने अपने भाइयों को तिलक करके भोजन करवाती है ।

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