अधिकमास में निंदित कार्य
मलमास के रूप में निन्दित इस अधिक मास को पुरूषोत्तम ने अपना नाम देकर कहा है कि, अब मैं इस अधिक मास का स्वामी हो गया हूँ। अतः सम्पूर्ण विश्व इसको सर्वथा विशुद्ध मानेगा और मेरी सादृश्यता प्राप्त कर यह मास अब सभी मासों का अधिपति, विश्व-वन्द्य एवं जगतपूज्य होगा। इसमें भगवान पुरूषोत्तम की पूजा करने वाले मनुष्यों के आधि-व्याधि एवं दुःख-दारिद्रय को यह नष्ट करने वाला होगा।
इस पुरूषोत्तम मास में किये गये स्थान-दान-व्रतादि एवं धर्माचरण के साक्षीभूत साक्षात पुरूषोत्तम भगवान श्री कृष्णचन्द्र हैं।
अधिकमास में फल प्राप्ति की कामना से किये जाने वाले प्रायः सभी कार्य अधिकमास में निंदित कार्य हैं। जैसे कुआं, बावली तालाब एवं बाग-बगीचे आदि लगाने का आरम्भ, देव-प्रतिष्ठा, प्रथम व्रतारम्भ व्रत उद्यापन, वधू-प्रवेश, भूमि, सोना एवं तुला आदि महादान विशिष्ट यज्ञ-योगादि, अष्टका श्राद्ध उपाकर्म, वेदारम्भ, वेदव्रत, गुरूदीक्षा, विवाह, उपनयन एवं चातुर्मासीय व्रतारम्भ आदि कार्य अधिकमास में निंदित कार्य हैं।
पुरूषोत्तम – मास में किये जाने वाले आवश्यक कर्म –
प्राणघातक बीमारी आदि की निवृति के लिए रूद्र मन्त्र जप, व्रतादि अनुष्ठान कपिल षष्ठी आदि व्रत, अनावृष्टि निवृत्ति हेतु पुरश्चरण-अनुष्ठानादि कार्य वषट्कार वर्जित हवन, ग्रहण-संबंधी श्राद्ध, दान-जपादि कार्य, पुत्रोत्पति के कृत्य, गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत संस्कार एवं निश्चित अवधि पर समाप्त करने एवं पूर्वागत प्रयोगादि कार्य अधिक मास में किये जा सकते हैं।
इस वर्ष पुरूषोत्तम (अधिक) मास का निर्णय एवं कर्त्तव्य
सूर्य जितने समय में एक राशि पूर्ण करे, उतने समय को सौरमास कहते हैं, ऐसे बारह सौरमासों का एक वर्ष होता है, जो सूर्य सिद्धान्त के अनुसार 365 दिन 15 घटी 31 पल और 30 विपल का होता है।
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर कृष्णपक्ष की अमावस्या पर्यन्त के समय को चान्द्रमास कहते हैं। ऐसे बारह मासों का एक चान्द्रवर्ष होता है जो 354 दिन, 22 घटी, 1 पल और 24 विपल का होता है। इस व्यवस्थानुसार एक सौर और चान्द्रवर्ष में प्रतिवर्ष 10 दिन, 53 घटी, 30 पल और 6 विपल का अन्तर पड़ता है। यदि इस प्रकार चान्द्रमासों को लगातार पीछे खिसकने दिया जाता तो वे 33 वर्षों में अपने चक्र को पूरा कर लिये होते एवं चान्द्रपंचांग से सम्बद्ध पर्व इस अवधि में सभी ऋतुओं में घूम गये होते, जैसे कि इस्लाम पंथ में घटित होता है।
इस अनिच्छित घटना को रोकने के लिए मलमास (अधिमास) के नियम चालू किये गये। उपर्युक्त कथनानुसार सौर तथा चान्द्रमास के वर्षां में लगभग ग्यारह दिन का अन्तर पड़ता रहता है। जिससे पौने तीन वर्षों में 30 दिन का अन्तर पड़ जाता है। इसी को अधिशेष व मलमास कहते हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि, 32 मास, 16 दिन और 4 घटी का समय बीत जाने पर 29 दिन, 31 घटी, 50 पल, और 7 विपल का एक अधिक मास आता है।
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इस गणितीय गणना के अनुपात से 33 सौरमास बराबर चौतींस चान्द्रमास के होते हैं। यह एक ऐसा प्रसंग है कि पौने तीन वर्ष अन्तर पर पड़ने वाले इस चान्द्रमास में रवि संक्रमण नही होता और मास तथा संक्रान्ति का संबंध भी टूट जाता है। चान्द्रमास और सूर्य संक्रान्ति दोनो का प्रारम्भ काल बिल्कुल समीप में हो, जिससे मास तथा ऋतुओं का संबंध ठीक-ठीक होता रहे तथा पर्व त्योहार तथा व्रत अपने-अपने समय पर होते रहें, इसलिए उस बढ़े हुये चान्द्रमास को ‘अधिक’ ऐसी संज्ञा देकर पृथक कर देते हैं और उस वर्ष 13 चान्द्रमास मान लेते हैं। उसमें संक्रान्ति न होने से उसे मास-द्वयात्मक एक मास मान लिया जाता है, जो साठ तिथियों का होता है। इस बढ़े हुए अधिक मास, को उसके उत्तर मास (अमान्त-मासानुसार) की संज्ञा देकर उसे उत्तर मास में मिला देते हैं। ऐसा करने से चान्द्रमास एवं सौरमासों का समन्वय हो जाता है और ऋतुओं का सम्बन्ध ठीक समय पर होने से पर्व, व्रतादि निश्चित समय पर होने लगते हैं, परन्तु इस अधिक मास को धर्मशास्त्रकारों ने सभी काम्य कर्मां के लिए निषिद्ध माना गया है।
अब यहाँ विवाद खड़ा हो जाता है कि, यह अधिक मास, ‘कालाधिक्य’ होने के कारण ‘मलमास’ या ‘अहंस्पति’ तथा ‘मलिम्लुच’ किस प्रकार हो गया और इसे सभी काम्य कर्मां के लिए निषिद्ध क्यों ठहराया गया ? ज्योतिषियों तथा धर्मशास्त्रियों ने इस अधिशेष को मलमास, मलिम्लुच एवं अहंस्पति की संज्ञा देकर इसे शुभ कार्यों के लिये वर्जित किया है। इसका कारण एक और भी है कि, इसमें संक्रान्ति विकृति हो गयी है। इसके अतिरिक्त वे एक तर्क और देते है कि, शकुनि, चतुष्पद नाग तथा किंस्तुघ्न इस चार करणों को रवि का मल कहते हैं। अधिक मास का प्रारम्भ इन मलसंज्ञक करणों द्वारा ही होने के कारण इसे मलमास कहना ही उचित होगा। धर्मशास्त्रकार कहते हैं कि, यह अधिमास बढ़ा हुआ काल होने से मलमास और अशुद्ध अर्थात् काम्यकर्म वर्जित है। मलमास को ही अधिक मास एवं पुरूषोत्तम मास भी कहते हैं, अर्थात् अमान्त मान से जिस चान्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति नही होती, वह अधिक मास या पुरूषोत्तम मास कहलाता है।
इस वर्ष अधिक मास दिनांक 17 सितम्बर 2020 गुरूवार सायं घं.16 मि.31 बजे से आरम्भ हो रहा है तथा 16 अक्टूबर 2020 शुक्रवार को घं.25 मि.01 बजे तक रहेगा। इस अधिक मास का नाम आश्विन मास होगा।
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ 17 अक्टूबर 2020, शनिवार से होगा, जिसकी विस्तृत जानकारी समयानुसार दी जाएगी।